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लेखनी प्रतियोगिता -22-Mar-2022 रैना बीती जाये

एक रात का क्या मूल्य होता है यह बात भगवान श्रीराम से बेहतर कौन जानता है ? बात तब की है जब भगवान श्रीराम का रावण से युद्ध हो रहा था । तब मेघनाथ ने लक्ष्मण जी पर एक " प्राणघातिनी शक्ति" से प्रहार किया था । उस शक्ति का प्रहार इतना विकट था कि लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे । तब हनुमान जी लंका से वैद्य "सुषेण" को लेकर आये और उन्होंने कहा कि लक्ष्मण के प्राण केवल एक ही सूरत में बच सकते हैं । यदि कोई भी व्यक्ति हिमालय पर जाकर वहां से संजीवनी बूटी ले आये और सुबह होने से पहले उसे लक्ष्मण जी को पिला दिया जाये , तब लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं । 
तब श्रीराम ने संकटमोचक हनुमानजी को संजीवनी बूटी लाने के लिए हिमालय भेजा और प्रभु श्रीराम उनके लौटने का इंतजार करने लगे । बस, यही रात आखिरी सिद्ध होने वाली थी उनके लिए । क्योंकि यदि हनुमानजी नहीं लौटे तो लक्ष्मण जी नहीं बचेंगे । जब लक्ष्मण जी नहीं रहेंगे तो फिर प्रभु श्री राम भी जीकर क्या करेंगे ?  जब प्रभु ही नहीं रहेंगे तो भरत, शत्रुघ्न, सीता माता भी जीकर क्या करेंगी ? इसलिए भगवान श्रीराम के लिए वह रात जीवन और मरण की रात थी । ऐसे में भगवान श्रीराम के मन में जो विचार आये होंगे वे इस प्रकार होंगे । 

यही रात आखिरी , यही रात भारी 
ये बैरन काली रात ना जाये गुजारी 
पल पल बढ़ती जाये प्रभु की बेकरारी 
कैसे फूट फूट कर रो रहे देखो, त्रिपुरारी 

"मैं माता सुमित्रा को क्या मुंह दिखाऊंगा
माता कौशल्या पूछेंगी तो क्या बताऊंगा 
भरत, शत्रुघ्न से मैं कैसे नजरें मिलाऊंगा 
अपनी सेना की नजरों में गिर ही जाऊंगा"

लक्ष्मण सा भाई मिलना क्या संभव है 
शायद अब इसका बचना असंभव है 
तिल तिल करके रात गुजरती जा रही है
प्रभु की आशा धराशायी होती जा रही है 

"हनुमान, तुम तो संकटमोचक कहलाते हो 
इतना विलंब तो तुम कभी नहीं लगाते हो 
लुका छिपी करके क्यों इतना सताते हो ?
संजीवनी बूटी लेकर सामने क्यों नहीं आते हो 

और ये रात, इतनी शीघ्रता से क्यों जा रही है
लक्ष्मण की नब्ज, मेरी हिम्मत टूटती जा रही है 
कहीं से आशा की किरण नजर नहीं आ रही है 
मृत्यु की सी छाया चारों ओर क्यों मंडरा रही है "

इससे पहले कि हौंसला टूटे 
लक्ष्मण के प्राण पखेरु छूटें 
इससे पहले कि अवध के भाग्य फूटें
इससे पहले की लोग छाती कूटें 

दूर से ही बजरंगबली दिखाई दे गये 
जैसे सबके प्रणों में जीवन भर गये 
प्रभु श्रीराम हर्ष के सागर में उतर गए
संजीवनी से लक्ष्मण के प्राण संवर गए 

एक रात की है ये जिंदगी 
इसे हंसकर गुजार दीजिए
कल किसने देखा है यहां पर 
आज को जी भरकर जी लीजिए 

हरिशंकर गोयल "हरि"
22.3.22 

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10 Comments

Swati chourasia

23-Mar-2022 09:43 AM

वाह बहुत ही खूबसूरत रचना 👌

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Niraj Pandey

23-Mar-2022 09:36 AM

जय हो बहुत ही बेहतरीन👌👌

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Punam verma

23-Mar-2022 09:08 AM

बहुत बढ़िया sir

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